यह मात्र एक मिथ्य अवधारणा है कि आरक्षण केवल १० वर्षों के लिए ही बनाया गया था।
आरक्षण के चार प्रकार हैं :
- राजनीतिक आरक्षण
- शिक्षा में आरक्षण
- रोज़गार में आरक्षण
- पदोन्नति में आरक्षण
अनुच्छेद 330 के अनुसार :
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति लोक सभा तथा विधानसभा में आरक्षण का आनंद लेते हैं; अनुच्छेद ३३२ और अनुच्छेद ३३४ के अनुसार प्रत्येक १० वर्ष में लोक सभा तथा विधानसभा में प्राप्त आरक्षण की समीक्षा की जाएगी। ( समाप्त नहीं) इस अनुचछेद के प्रति अधिकांश लोगों में गलत धारणाएं होती हैं।
यह सरासर झूठ है कि सभी प्रकार के आरक्षण केवल १० वर्ष के लिए थे।
अब द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ प्रकार के आरक्षण पर आते हैं।
अनुच्छेद १५ व १६ जो कि मूलभूत संवैधानिक अधिकार हैं; शिक्षा तथा रोज़गार, 15(4) व 16(4) में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को समाहित करते हैं। ये हमारे मूलभूत अधिकार हैं। इन में कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता क्योंकि ये हमारे मूलभूत संवैधानिक अधिकार हैं।
जब हमारा संविधान प्रभाव में आया तब शासक वर्ग और विपक्ष ने जान बूझकर यह गलत अवधारणा फैलाई कि शिक्षा और रोजगार में आरक्षण केवल १० वर्ष के लिए ही
वह सत्य जिसके बारे में सभी भारतीयों को पता होना चाहिए, है कि शिक्षा और रोजगार में आरक्षण केवल १० वर्ष के लिए नहीं है । यह अच्छे के लिए ही है अर्थात हमेशा के लिए_( जब तक जाति को समाप्त नहीं किया जाता)
जब तक जाति व्यवस्था रहेगी, आरक्षण चलता रहेगा।
यह सत्य है कि आरक्षण अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए लाया गया था लेकिन केवल तब तक जब तक कि जाति को समाप्त नहीं किया जाता। आज कल लोग जाति को भूल कर आरक्षण के पीछे पड़े हैं।
तो वापस कार्य पर लगते हैं।
जाति व्यवस्था को अभी नष्ट करो!