भारत के बौद्धों में हर वर्ष दीवाली अर्थात दीपावली को लेकर बड़ा ही संदेह निर्माण हुआ पाया जाता है. कुछ लोग प्रचार कर रहे है कि दीवाली बौद्धों का त्योंहार है. उन्होंने उसे बड़ा ही उम्दा सा नाम दिया है – दीपदानोत्सव मेरे अल्प अभ्यास में किसी बौद्ध साहित्य में इस तरह का नाम नहीं […]
मुझे लगता है कि श्री एम.के. गांधी इस अवसर पर कुछ हद तक सही थे। यह एक स्वागत योग्य दुष्प्रभाव हो सकता है, लेकिन अलग निर्वाचन क्षेत्र का यह उद्देश्य नहीं था । सितंबर 1932 में प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड को लिखे एक पत्र में गांधी ने लिखा, “पिछड़े वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की […]
यह मात्र एक मिथ्य अवधारणा है कि आरक्षण केवल १० वर्षों के लिए ही बनाया गया था। आरक्षण के चार प्रकार हैं : अनुच्छेद 330 के अनुसार : अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति लोक सभा तथा विधानसभा में आरक्षण का आनंद लेते हैं; अनुच्छेद ३३२ और अनुच्छेद ३३४ के अनुसार प्रत्येक १० वर्ष में लोक […]
ब्रिटेन: कल 25 दिसंबर, दिन मंगलवार को ब्रिटेन के कई शहरो में मनुस्मृति को जलाया गया ।मनुस्मृति एक ऐसी किताब है ,जिसके अनुसार मानव -मानव में फ़र्क़ किया जाता है और सबसे ज़्यादा उसमें महलायो के समान का हनन किया गया है । इस किताब को सबसे पहले डाक्टर भीम राव अम्बेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को जलाया था । इसी अमानवता वाली किताब को आज भी जलाने की नोबत महसूस होती है, जब आज भी संजलि जैसी मासूम को शरेयाम ज़िंदा जला दिया जाता है । विदेशों में कई जगह पर मनुस्मृति जलाई गई जिसमें ब्रिटेन में इस अमानवता वाली किताब को जलाया गया । याद रहे मनुस्मृति जलाने का आग़ाज़ ब्रिटेन के शहर लंदन से पिछले साल से हुआ ।क्यूँकि तब कुछ मनुवादीयो ने भारत के सविधान को दिल्ली में जलाया था । ब्रिटेन के शहर वुलवरहैंपटन में “बसपा सप्पोटरस यू॰के॰ ” की तरफ़ से मनुस्मृति को जलाया गया और वहीं लंदन में सभी अंबेडकरी युवा द्वारा मनु की मनुस्मृति को अग्नि भेंट किया गया और साथ में ही वो पाँच प्रतिज्ञा को भी पढा गया जो बाबा साहिब ने 27 दिसंबर 1927 को दी थी । Author: Ranjit
QUESTION: क्या भीमराव अम्बेडकर को भारत में आरक्षण के लिए दोषी ठहराया जा सकता है? Answered by Shekhar Bodhakar यह आपके लिए आश्चर्य की बात हो सकती है परन्तु डॉ आंबेडकर आरक्षण व्यवस्था चाहते ही नहीं थे बल्कि कस्तूरबा गांधी के निवेदन पर महात्मा गांधी की जान बचाने के लिए उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा। डॉ आंबेडकर ने जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को नहीं बनाया जैसा कि आम तौर पर दिखाया जाता है। वे केवल उस समय की सरकार द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडॉनल्ड के द्वारा स्वीकृत कानूनी “कम्युनल अवॉर्ड” को लागू करवाना चाहते थे। इस समझौते ने आरक्षित जाति व जनजातियों को हिन्दू बहुसंख्यक सरकार से राजनीतिक सुरक्षा के रूप में एक अलग निर्वाचन क्षेत्र देने का अधिकार दिया जिसकी स्वतंत्रता पश्चात सत्ता में आने (लागू होने) की आशा थी। वे गांधीजी ही थे जिन्होंने इस अधि निर्णय का विरोध किया; इसके पश्चात वे आंबेडकर पर अलग निर्वाचन क्षेत्र के बदले में आरक्षण स्वीकार करने का दबाव (या यूं कहें कि एक प्रकार की भावनात्मक धमकी <इमोशनल ब्लैकमेल> ) डालने के लिए भूख हड़ताल पर चले गए। पर मजे की बात तो ये है कि इस गांधीजी ने सिखों, मुस्लिमों, आंग्ल- भारतीयों.… आदि के लिए स्वीकृत अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध नहीं किया.. उन्होंने केवल अस्पृश्यों व जनजातियों को लेकर विरोध किया। यदि किसी ने आरक्षण व्यवस्था बनाकर देश का विनाश किया है तो ये वो लोग हैं जिन्होंने “जाति वा जातिवाद” को बनाया। इसने वर्णाश्रम व्यवस्था के नाम पर समाज के हाशिए पर रखे समुदायों के लिए अकल्पनीय कठिनाइयां और निर्दयता उत्पन्न कर दी। यदि यह इसके लिए नहीं होता तो अस्पृश्यों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की आवश्यकता ही नहीं होती, ना गांधीजी का उपवास और ना ही जाति आधारित संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था। आरक्षण हमारे संविधान में दिया गया है, केवल अम्बेडकर के द्वारा नहीं बल्कि उस समय के सभी भारतीय अधिनायकों के द्वारा जो कि संविधान सभा के सदस्य थे। योग्यता (मेरिट) आज भी इस देश में अनाथ है और इस पर किसी जाति विशेष का आधिपत्य नहीं है। केवल वही लोग जिनके निहित स्वार्थ हैं वे ही मेरिट के बारे में बात करते हैं। लोगों ने केवल एक जाति विशेष के लिए शिक्षा में जाति आधारित आरक्षण को असंख्य पीढ़ियों तक सहन किया और उस समय में किसी ने भी योग्यता के बारे में चिंता नहीं की। एक जाति विशेष के शत प्रतिशत लोग तो योग्य नहीं हो सकते और इसके बारे में उस समय तक किसी ने प्रश्न नहीं उठाया जब तक कि समानता, स्वतंत्रता, भाईचारे, सभी के लिए सामाजिक न्याय की भावना पर आधारित एक नए देश के निर्माण का समय नहीं आ गया जो की एक जाति आधारित समाज में कदापि संभव नहीं है। आरक्षण नीति पूना पैक्ट का परिणाम है! जो कि केवल गांधीजी के कम्युनल अवॉर्ड के विरोध में गैर कानूनी तौर पर भूख हड़ताल पर जाने के कारण हुआ जिसे आंबेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में कानूनी रूप से जीता था। डॉ आंबेडकर ने ने उनके लिए कम्युनल अवॉर्ड की मांग की (और जीते भी) जो की शताब्दियों से यदि सदियों से नहीं, मानवाधिकारों से वंचित व दमन के शिकार हैं। और गांधीजी ने बदले में आरक्षण की मांग की इसलिए अम्बेडकर को आरक्षण हेतु दोषी ठहराना बंद करें जब तक कि आप पूना पेक्ट को नकारकर अलग निर्वाचन क्षेत्र के मूल समझौते को स्वीकार नहीं कर लेते। निष्कर्ष तो कौन है भारत में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था का जिम्मेदार? ~Shekhar Bodhakar
कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली तथा दीपदान उत्सव क्यों मनाए जाते हैं ? दीपावली बसंत का त्योहार है। फिर इसे सर्दियों में ही क्यों मनाया जाता है? यह दिन बौद्ध कैलेंडर में एक ऐसा दिन था जब एक महान बौद्ध भिक्खु, महा मोगल्लान की हत्या कर दी गई थी। कार्तिक अमावस्या को किसी भी […]